जिमाअ (सम्भोग)

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1593. जिमाअ रोज़े को बातिल कर देता है ख़्वाह उज़्वे तनासुल सुपारी तक ही दाखिल हो और मनी भी खारिज न हो।
*1594. अगर आला ए तनासुल सुपारी से कम दाखिल हो और मनी भी खारिज न हो तो रोज़ा बातिल नहीं होता लेकिन जिस शख़्स की सुपारी कटी हुई हो अगर वह सुपारी की मिक़्दार से कमतर मिक़्दार दाखिल करे तो अगर यह कहा जाए कि उसने हमबिस्तरी की है तो उसका रोज़ा बातिल हो जायेगा।
*1595. अगर कोई शख़्स अमदन जिमाअ का इरादा करे और फिर शक करे कि सुपारी के बराबर दुखूल हुआ था या नहीं तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर उसका रोज़ा बातिल है और ज़रूरी है कि उस रोज़े की क़ज़ा बजा लाए लेकिन कफ़्फ़ारा वाजिब नहीं है।
*1596. अगर कोई शख़्स भूल जाए कि रोज़े से है और जिमाअ करे या उसे जिमाअ पर इस तरह मजबूर किया जाए कि उसका इख़्तियार बाक़ी न रहे तो उसका रोज़ा बातिल नहीं होगा अलबत्ता अगर जिमाअ की हालत में उसे याद आ जाए कि रोज़े से है या मजबूरी ख़त्म हो जाए तो ज़रूरी है कि फ़ौरन तर्क करे और अगर ऐसा न करे तो उसका रोज़ा बातिल है।