इस्तेम्ना (हस्तमैथुन)

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1597. अगर रोज़ादार इस्तेम्ना करे (इस्तेमना के मअनी मस्अला 1581 में बताए जा चुके हैं) तो उसका रोज़ा बातिल हो जाता है।
*1598. अगर बे इख़्तियारी की हालत में किसी की मनी खारिज हो जाए तो उसका रोज़ा बातिल नहीं है।
*1599. अगरचे रोज़ादार को इल्म हो कि अगर दिन में सोयेगा तो उसे एहतिलाम हो जायेगा यानी सोते में उसकी मनी ख़ारिज हो जायेगी तब भी उसके लिये सोना जाइज़ है ख़्वाह न सोने की वजह से उसे कोई तक्लीफ़ न भी हो और उसे एहतिलाम हो जाए तो उसका रोज़ा बातिल नहीं होता।
*1600. अगर रोज़ादार मनी खारिज होते वक़्त नीन्द से बेदार हो जाए तो उस पर यह वाजिब नहीं कि मनी को निकलने से रोके।
*1601. जिस रोज़ादार को एहतिलाम हो गया हो तो वह पेशाब कर सकता है ख़्वाह उसे यह इल्म हो कि पेशाब करने से बाक़ी मांदा मनी नाली से बाहर आ जायेगी।
*1602. जब रोज़ादार को एहतिलाम हो जाए उसे मालूम हो कि मनी नाली में रह गई है और वह ग़ुस्ल से पहले पेशाब नहीं करेगा तो ग़ुस्ल के बाद मनी उस के जिस्म से खारिज नहीं होगी तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि ग़ुस्ल से पहले पेशाब करे।
*1603. जो शख़्स मनी निकालने के इरादे से छेड़छाड़ और दिललगी करे तो ख़्वाह मनी न भी निकले तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर ज़रूरी है कि रोज़े को तमाम करे और उसकी क़ज़ा भी बजा लाए।
*1604. अगर रोज़ादार मनी निकालने के इरादे के बग़ैर मिसाल के तौर पर अपनी बीवी से छेड़छाड़ और हँसी मज़ाक करे और उसे इत्मीनान हो कि मनी खारिज नहीं होगी तो अगरचे इत्तिफ़ाक़न मनी खारिज हो जाए उसका रोज़ा सहीह है। अलबत्ता अगर उसे इत्मीनान न हो तो उस सूरत में जब मनी ख़ारिज होगी तो उसका रोज़ा बातिल हो जायेगा।