ग़ुबार को हल्क़ तक पहुंचाना

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1612. एहतियाते वाजिब की बिना पर कसीफ़ ग़ुबार का हल्क़ तक पहुंचाना रोज़े को बातिल कर देता है ख़्वाह ग़ुबार किसी ऐसी चीज़ का हो जिसका खाना हलाल हो मसलन आटा या किसी ऐसी चीज़ का हो जिसका खाना हराम हो मसलन मिट्टी।
*1613. अक़्वा यह है कि ग़ैरे कसीफ़ ग़ुबार हल्क़ तक पहुंचने से रोज़ा बातिल हो जाता है।
*1614. अगर हवा की वजह से ग़ुबार पैदा हो और इंसान मुतवज्जह होने और एहतियात कर सकने के बावजूद एहतियात न करे और ग़ुबार उसके हल्क़ तक पहुंच जाए तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसका रोज़ा बातिल हो जाता है।
*1615. एहतियाते वाजिब यह है कि रोज़ादार सिग्रेट और तम्बाकू वग़ैरा का धुवां भी हल्क़ तक न पहुंचाए।
*1616. अगर इंसान एहतियात न करे और ग़ुबार या धुवां वग़ैरा हल्क़ में चला जाए तो अगर उसे यक़ीन या इत्मीनान था कि यह चीज़ें हल्क़ में न पहुंचेंगी तो उसका रोज़ा सहीह है लेकिन उसे गुमान था कि यह हल्क़ तक नहीं पहुंचेंगी तो बेहतर यह है कि रोज़ा की क़ज़ा बजा लाए।
*1617. अगर कोई शख़्स यह भूल जाए कि रोज़े से है एहतियात न करे या बे इख़्तियार ग़ुबार वग़ैरा उसके हल्क़ तक पहुंच जाए तो उसका रोज़ा बातिल नहीं होता।