वह लोग जिन पर रोज़ा रखना वाजिब नहीं

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1734. जो शख़्स बुढ़ापे की वजह से रोज़ा न रख सकता हो या रोज़ा रखना उसके लिए शदीद तक्लीफ़ का बाइस हो उस पर रोज़ा वाजिब नहीं है लेकिन रोज़ा न रखने की सूरत में ज़रूरी है कि हर रोज़े के एवज़ एक मुद तआम यानी गंदुम या जौ या रोटी या उन से मिलती जुलती कोई चीज़ फ़क़ीर को दे।
*1735. जो शख़्स बुढ़ापे की वजह से माहे रमज़ानुल मुबारक के रोज़े न रखे अगर वह रमज़ानुल मुबारक के बाद रोज़े रखने के क़ाबिल हो जाये तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि जो रोज़े न रखें हो उनकी क़ज़ा बजा लाए।
*1736. अगर किसी शख़्स को कोई ऐसी बीमारी हो जिसकी वजह से उसे बहुत ज़्यादा प्यास लगती हो और वह प्यास बर्दाश्त न कर सकता हो या प्यास की वजह से उसे तक्लीफ़ होती हो तो उस पर रोज़ा वाजिब नहीं है लेकिन रोज़ा न रखने की सूरत में ज़रूरी है कि हर रोज़े के एवज़ एक मुद तआम फ़क़ीर को दे और एहतियाते मुस्तहब यह है कि जितनी मिक़्दार अशद ज़रूरी हो उस से ज़्यादा पानी न पिये और बाद में जब रोज़ा रखने के क़ाबिल हो जाए तो जो रोज़े न रखे हों एहतियाते मुस्तहब की बिना पर उन की क़ज़ा बजा लाए।
*1737. जिस औरत का वज़्ए हम्ल का वक़्त क़रीब हो, उसका रोज़ा रखना ख़ुद उसके लिए या उसके होने वाले बच्चे के लिए मुज़िर हो उस पर रोज़ा वाजिब नहीं है और ज़रूरी है कि वह हर दिन के एवज़ एक मुद तआम फ़क़ीर को दे और ज़रूरी है कि दोनों सूरतों में जो रोज़े न रखे हों उनकी क़ज़ा बजा लाए।
*1738. जो औरत बच्चे को दूध पिलाती हो और उसका दूध कम हो ख़्वाह वह बच्चे की माँ हो या दाया और ख़्वाह बच्चे को मुफ़्त दूध पिला रही हो अगर उसका रोज़ा रखना खुद उसके या दूध पीने वाले बच्चे के लिए मुज़िर हो तो उस औरत पर रोज़ा रखना वाजिब नहीं है और ज़रूरी है कि हर एक दिन के एवज़ एक मुद तआम फ़क़ीर को दे और दोनों सूरतों में जो रोज़े न रखे हों उन की क़ज़ा करना ज़रूरी है। लेकिन एहतियाते वाजिब की बिना पर यह हुक्म सिर्फ़ उस सूरत में है जबकि बच्चे को दूध पिलाने का इनहिसार उसी पर हो। लेकिन अगर बच्चे को दूध पिलाने का कोई और तरीक़ा हो मसलन कुछ औरतें मिल कर बच्चे को दूध पिलायें तो ऐसी सूरत में इस हुक्म के साबित होने में इश्काल है।