متن احکام
1758. (मुन्दरिजा ज़ैल) पांच अश्ख़ास के लिए मुस्तहब है कि अगरचे रोज़े से न हों माहे रमज़ानुल मुबारक में उन अफ़्आल से पर्हेज़ करें जो रोज़े को बातिल करते हैं।
1. वह मुसाफ़िर जिसने सफ़र में कोई ऐसा काम किया हो जो रोज़े को बातिल करता हो और वह ज़ोहर से पहले अपने वतन या ऐसी जगह पहुंच जाए जहाँ वह दस दिन रहना चाहता हो।
2. वह मुसाफ़िर जो ज़ोहर के बाद अपने वतन या ऐसी जगह पहुंच जाए जहां वह दस दिन रहना चाहता हो। और इसी तरह अगर ज़ोहर से पहले उन जगहों पर पहुंच जाए जबकि वह सफ़र में रोज़ा तोड़ चुका हो तब भी यही हुक्म है।
3. वह मरीज़ जो ज़ोहर के बाद तन्दरुस्त हो जाए और यही हुक्म है अगर ज़ोहर से पहले तन्दरुस्त हो जाए अगरचे उसने कोई ऐसा काम (भी) किया हो जो रोज़े को बातिल करता हो और इसी तरह अगर ऐसा काम न किया हो तो उसका हुक्म मस्अला 1576 में गुज़र चुका है।
4. वह औरत जो दिन में हैज़ या निफ़ास के ख़ून से पाक हो जाए।
*1759. रोज़ादार के लिए मुस्तहब है कि रोज़ा इफ़्तार करने से पहले मग़्रिब और इशा की नमाज़ पढ़े लेकिन अगर कोई दूसरा शख़्स उस का इन्तिज़ार कर रहा हो या उसे इतनी भूक लगी हो कि हुज़ूरे क़ल्ब के साथ नमाज़ न पढ़ सकता हो तो बेहतर है कि रोज़ा इफ़्तार करे लेकिन जहाँ तक मुम्किन हो नमाज़ फ़ज़ीलत के वक़्त में ही अदा करे।