«البقرة»

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अलीफ़॰ लाम॰ मीम॰ ١ वह किताब यही हैं, जिसमें कोई सन्देह नहीं, मार्गदर्शन हैं डर रखनेवालों के लिए, ٢ जो अनदेखे ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया हैं उसमें से कुछ खर्च करते हैं; ٣ और जो उस पर ईमान लाते हैं जो तुम पर उतरा और जो तुमसे पहले अवतरित हुआ हैं और आख़िरत पर वही लोग विश्वास रखते हैं; ٤ वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे मार्ग पर हैं और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं ٥ जिन लोगों ने कुफ़्र (इनकार) किया उनके लिए बराबर हैं, चाहे तुमने उन्हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो, वे ईमान नहीं लाएँगे ٦ अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आँखों पर परदा पड़ा है, और उनके लिए बड़ी यातना है ٧ कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हैं, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते ٨ वे अल्लाह और ईमानवालों के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि धोखा वे स्वयं अपने-आपको ही दे रहे हैं, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते ٩ उनके दिलों में रोग था तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके लिए झूठ बोलते रहने के कारण उनके लिए एक दुखद यातना है ١٠ और जब उनसे कहा जाता है कि "ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो", तो कहते हैं, "हम तो केवल सुधारक है।"" ١١ जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता ١٢ और जब उनसे कहा जाता है, "ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं", कहते हैं, "क्या हम ईमान लाए जैसे कम समझ लोग ईमान लाए हैं?" जान लो, वही कम समझ हैं परन्तु जानते नहीं ١٣ और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते, "हम भी ईमान लाए हैं," और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, "हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।" ١٤ अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे हैं ١٥ यही वे लोग हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार में न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके ١٦ उनकी मिसाल ऐसी हैं जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने उसके वातावरण को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उसका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हें अँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा हैं ١٧ वे बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धे हैं, अब वे लौटने के नहीं ١٨ या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों - और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा हैं ١٩ मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखों की रौशनी उचक लेने को है; जब भी उनपर चमकती हो, वे चल पड़ते हो और जब उनपर अँधेरा छा जाता हैं तो खड़े हो जाते हो; अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और देखने की शक्ति बिलकुल ही छीन लेता। निस्सन्देह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ٢٠ ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने रब की जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको; ٢١ वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फर्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष न ठहराओ ٢٢ और अगर उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा हैं, तुम किसी सन्देह में न हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास हैं, यदि तुम सच्चे हो ٢٣ फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गई है ٢٤ जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी; जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोजी के रूप में मिलेगा, तो कहेंगे, "यह तो वही हैं जो पहले हमें मिला था," और उन्हें मिलता-जुलता ही (फल) मिलेगा; उनके लिए वहाँ पाक-साफ़ पत्नि याँ होगी, और वे वहाँ सदैव रहेंगे ٢٥ निस्संदेह अल्लाह नहीं शरमाता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज़ की। फिर जो ईमान लाए है वे तो जानते है कि वह उनके रब की ओर से सत्य हैं; रहे इनकार करनेवाले तो वे कहते है, "इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है?" इससे वह बहुतों को भटकने देता है और बहुतों को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों ही को भटकने देता है ٢٦ जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे सुदृढ़ करने के पश्चात भंग कर देते हैं और जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है उसे काट डालते हैं, और ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं, वही हैं जो घाटे में हैं ٢٧ तुम अल्लाह के साथ अविश्वास की नीति कैसे अपनाते हो, जबकि तुम निर्जीव थे तो उसने तुम्हें जीवित किया, फिर वही तुम्हें मौत देता हैं, फिर वही तुम्हें जीवित करेगा, फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना हैं? ٢٨ वही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन की सारी चीज़े पैदा की, फिर आकाश की ओर रुख़ किया और ठीक तौर पर सात आकाश बनाए और वह हर चीज़ को जानता है ٢٩ और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि "मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफ़ा (सत्ताधारी) बनानेवाला हूँ।" उन्होंने कहा, "क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्तपात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?" उसने कहा, "मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।" ٣٠ उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, "अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।" ٣١ वे बोले, "पाक और महिमावान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।" ٣٢ उसने कहा, "ऐ आदम! उन्हें उन लोगों के नाम बताओ।" फिर जब उसने उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।" ٣٣ और याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि "आदम को सजदा करो" तो, उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलील के; उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और काफ़िर हो रहा ٣٤ और हमने कहा, "ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो और वहाँ जी भर बेरोक-टोक जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे खाओ, लेकिन इस वृक्ष के पास न जाना, अन्यथा तुम ज़ालिम ठहरोगे।" ٣٥ अन्ततः शैतान ने उन्हें वहाँ से फिसला दिया, फिर उन दोनों को वहाँ से निकलवाकर छोड़ा, जहाँ वे थे। हमने कहा कि "उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु होगे और तुम्हें एक समय तक धरती में ठहरना और बिसलना है।" ٣٦ फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिए, तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़बूल कर ली; निस्संदेह वही तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है ٣٧ हमने कहा, "तुम सब यहाँ से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।" ٣٨ और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वहीं आग में पड़नेवाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे ٣٩ ऐ इसराईल का सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था। और मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुमसे की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करूँगा और हाँ मुझी से डरो ٤٠ और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो ٤١ और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बुझते सत्य को छिपाओ मत ٤٢ और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको ٤٣ क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? ٤٤ धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हो; ٤٥ जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना हैं और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है ٤٦ ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी; ٤٧ और डरो उस दिन से जब न कोई किसी भी ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़बूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्‌या (अर्थदंड) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे। ٤٨ और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमं तुम्हारे रब की ओर से बड़ी परीक्षा थी ٤٩ याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया ٥٠ और याद करो जब हमने मूसा से चालीस रातों का वादा ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना देवता बना बैठे, तुम अत्याचारी थे ٥١ फिर इसके पश्चात भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखालाओ ٥٢ और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको ٥٣ और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी कौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की स्पष्ट में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ी तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।" ٥٤ और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।" फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा, तुम देखते रहे ٥٥ फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ ٥٦ और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर 'मन्न' और 'सलबा' उतारा - "खाओ, जो अच्छी पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की है।" उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे ٥٧ और जब हमने कहा था, "इस बस्ती में प्रवेश करो फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, "छूट हैं।" हम तुम्हारी खताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।" ٥٨ फिर जो बात उनसे कहीं गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया। अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी ٥٩ और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी की प्रार्थना को तो हमने कहा, "चट्टान पर अपनी लाठी मारो," तो उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - "खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।" ٦٠ और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि हमारे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज़ निकाले।" और मूसा ने कहा, "क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा हैं, तुम्हें मिल जाएगा" - और उनपर अपमान और हीन दशा थोप दी गई, और अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे ٦١ निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबिई, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे - ٦٢ और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर पर्वत को तुम्हारे ऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था, "जो चीज़ हमने तुम्हें दी हैं उसे मजबूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें हैं उसे याद रखो ताकि तुम बच सको।" ٦٣ फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपा और उसकी दयालुता तुम पर न होती, तो तुम घाटे में पड़ गए होते ٦٤ और तुम उन लोगों के विषय में तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से 'सब्त' के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया, "बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए!" ٦٥ फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिए शिक्षा-सामग्री और डर रखनेवालों के लिए नसीहत बनाकर छोड़ा ٦٦ और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय जब्ह करो।" कहने लगे, "क्या तुम हमसे परिहास करते हो?" उसने कहा, "मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ।" ٦٧ बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्टा कर दे कि वह गाय कौन-सी है?" उसने कहा, "वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो न बूढ़ी है, न बछिया, इनके बीच की रास है; तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, करो।" ٦٨ कहने लगे, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा है?" कहा, "वह कहता है कि वह गाय सुनहरी है, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती है।" ٦٩ बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कौन-सी है, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य। पता लगा लेंगे।" ٧٠ उसने कहा, " वह कहता हैं कि वह ऐसा गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।" बोले, "अब तुमने ठीक बात बताई है।" फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे ٧١ और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था ٧٢ तो हमने कहा, "उसे उसके एक हिस्से से मारो।" इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो ٧٣ फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है। और अल्लाह, जो कुछ तुम कर रहे हो, उससे बेखबर नहीं है ٧٤ तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे? ٧٥ और जब वे ईमान लानेवाले से मिलते है तो कहते हैं, "हम भी ईमान रखते हैं", और जब आपस में एक-दूसरे से एकान्त में मिलते है तो कहते है, "क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोली, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबिला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!" ٧٦ क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं? ٧٧ और उनमें सामान्य बेपढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं ٧٨ तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं फिर कहते हैं, "यह अल्लाह की ओर से है", ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं ٧٩ वे कहते है, "जहन्नम की आग हमें नहीं छू सकती, हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों की बात और है।" कहो, "क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है? फिर तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं जा सकता? या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं? ٨٠ क्यों नहीं; जिसने भी कोई बदी कमाई और उसकी खताकारी ने उसे अपने घरे में ले लिया, तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है; वे उसी में सदैव रहेंगे ٨١ रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वही जन्नतवाले हैं, वे सदैव उसी में रहेंगे।" ٨٢ और याद करो जब इसराईल की सन्तान से हमने वचन लिया, "अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे; और माँ-बाप के साथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे; और यह कि लोगों से भली बात कहो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।" तो तुम फिर गए, बस तुममें से बचे थोड़े ही, और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे ٨٣ और याद करो जब तुमसे वचन लिया, "अपने ख़ून न बहाओगे और न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे।" फिर तुमने इक़रार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो ٨٤ फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गिरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो; तुम गुनाह और ज़्यादती के साथ उनके विरुद्ध एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते हो; और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आते है, तो उनकी रिहाई के लिए फिद्ए (अर्थदंड) का लेन-देन करते हो जबकि उनको उनके घरों से निकालना ही तुम पर हराम था, तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते? फिर तुममें जो ऐसा करें उसका बदला इसके सिवा और क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो? और क़यामत के दिन ऐसे लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा। अल्लाह उससे बेखबर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो ٨٥ यही वे लोग है जो आख़िरात के बदले सांसारिक जीवन के ख़रीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें कोई सहायता पहुँच सकेगी ٨٦ और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे-पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे; और मरयम के बेटे ईसा को खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की और पवित्र-आत्मा के द्वारा उसे शक्ति प्रदान की; तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हारे जी को पसन्द न था, तो तुम अकड़ बैठे, तो एक गिरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गिरोह को क़त्ल करते हो? ٨٧ वे कहते हैं, "हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े है" नहीं, बल्कि उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनपर लानत की है; अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे ٨٨ और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है - और इससे पहले तो वे न माननेवाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे है - फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसे वे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर! ٨٩ क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए है। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है ٩٠ जब उनसे कहा जाता है, "अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ", तो कहते है, "हम तो उसपर ईमान रखते है जो हम पर उतरा है," और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उसके पास है। कहो, "अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?" ٩١ तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे ٩٢ कहो, "यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों को छोड़कर केवल तुम्हारे ही लिए है, फिर तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।" ٩٣ अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है ٩٤ अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो जालिमों को भली-भाँति जानता है ٩٥ तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालो से भी बढ़े हुए है। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उस हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी जाए, तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे कर रहे है ٩٦ कहो, "जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथा अनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है ٩٧ जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।" ٩٨ और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी है और उनका इनकार तो बस वही लोग करते हैस जो उल्लंघनकारी हैं ٩٩ क्या यह एक निश्चित नीति है कि जब कि उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गिरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते ١٠٠ और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल आया, जिससे उस (भविष्यवाणी) की पुष्टि हो रही है जो उनके पास थी, तो उनके एक गिरोह ने, जिन्हें किताब मिली थी, अल्लाह की किताब को अपने पीठ पीछे डाल दिया, मानो वे कुछ जानते ही नही ١٠١ और जो वे उस चीज़ के पीछे पड़ गए जिसे शैतान सुलैमान की बादशाही पर थोपकर पढ़ते थे - हालाँकि सुलैमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया था, बल्कि कुफ़्र तो शैतानों ने किया था; वे लोगों को जादू सिखाते थे - और उस चीज़ में पड़ गए जो बाबिल में दोनों फ़रिश्तों हारूत और मारूत पर उतारी गई थी। और वे किसी को भी सिखाते न थे जब तक कि कह न देते, "हम तो बस एक परीक्षा है; तो तुम कुफ़्र में न पड़ना।" तो लोग उन दोनों से वह कुछ सीखते है, जिसके द्वारा पति और पत्नी में अलगाव पैदा कर दे - यद्यपि वे उससे किसी को भी हानि नहीं पहुँचा सकते थे। हाँ, यह और बात है कि अल्लाह के हुक्म से किसी को हानि पहुँचनेवाली ही हो - और वह कुछ सीखते है जो उन्हें हानि ही पहुँचाए और उन्हें कोई लाभ न पहुँचाए। और उन्हें भली-भाँति मालूम है कि जो उसका ग्राहक बना, उसका आखिरत में कोई हिस्सा नहीं। कितनी बुरी चीज़ के बदले उन्होंने प्राणों का सौदा किया, यदि वे जानते (तो ठीक मार्ग अपनाते) ١٠٢ और यदि वे ईमान लाते और डर रखते, तो अल्लाह के यहाँ से मिलनेवाला बदला कहीं अच्छा था, यदि वे जानते (तो इसे समझ सकते) ١٠٣ ऐ ईमान लानेवालो! 'राइना' न कहा करो, बल्कि 'उनज़ुरना' कहा और सुना करो। और इनकार करनेवालों के लिए दुखद यातना है ١٠٤ इनकार करनेवाले नहीं चाहते, न किताबवाले और न मुशरिक (बहुदेववादी) कि तुम्हारे रब की ओर से तुमपर कोई भलाई उतरे, हालाँकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता के लिए ख़ास कर ले; अल्लाह बड़ा अनुग्रह करनेवाला है ١٠٥ हम जिस आयत (और निशान) को भी मिटा दें या उसे भुला देते है, तो उससे बेहतर लाते है या उस जैसा दूसरा ही। क्या तुम नहीं जानते हो कि अल्लाह को हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है? ١٠٦ क्या तुम नहीं जानते कि आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है और अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक? ١٠٧ (ऐ ईमानवालों! तुम अपने रसूल के आदर का ध्यान रखो) या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से उसी प्रकार से प्रश्न और बात करो, जिस प्रकार इससे पहले मूसा से बात की गई है? हालाँकि जिस व्यक्ति न ईमान के बदले इनकार की नीति अपनाई, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया ١٠٨ बहुत-से किताबवाले अपने भीतर की ईर्ष्या से चाहते है कि किसी प्रकार वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फेरकर तुम्हे इनकार कर देनेवाला बना दें, यद्यपि सत्य उनपर प्रकट हो चुका है, तो तुम दरगुज़र (क्षमा) से काम लो और जाने दो यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला लागू न कर दे। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ١٠٩ और नमाज़ कायम करो और ज़कात दो और तुम स्वयं अपने लिए जो भलाई भी पेश करोगे, उसे अल्लाह के यहाँ मौजूद पाओगे। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है ١١٠ और उनका कहना है, "कोई व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं करता सिवाय उससे जो यहूदी है या ईसाई है।" ये उनकी अपनी निराधार कामनाएँ है। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो अपने प्रमाण पेश करो।" ١١١ क्यों नहीं, जिसने भी अपने-आपको अल्लाह के प्रति समर्पित कर दिया और उसका कर्म भी अच्छे से अच्छा हो तो उसका प्रतिदान उसके रब के पास है और ऐसे लोगो के लिए न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे ١١٢ यहूदियों ने कहा, "ईसाईयों की कोई बुनियाद नहीं।" और ईसाइयों ने कहा, "यहूदियों की कोई बुनियाद नहीं।" हालाँकि वे किताब का पाठ करते है। इसी तरह की बात उन्होंने भी कही है जो ज्ञान से वंचित है। तो अल्लाह क़यामत के दिन उनके बीच उस चीज़ के विषय में निर्णय कर देगा, जिसके विषय में वे विभेद कर रहे है ١١٣ और उससे बढ़कर अत्याचारी और कौन होगा जिसने अल्लाह की मस्जिदों को उसके नाम के स्मरण से वंचित रखा और उन्हें उजाडने पर उतारू रहा? ऐसे लोगों को तो बस डरते हुए ही उसमें प्रवेश करना चाहिए था। उनके लिए संसार में रुसवाई (अपमान) है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना नियत है ١١٤ पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, अतः जिस ओर भी तुम रुख करो उसी ओर अल्लाह का रुख़ है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा समाईवाला (सर्वव्यापी) सर्वज्ञ है ١١٥ कहते है, अल्लाह औलाद रखता है - महिमावाला है वह! (पूरब और पश्चिम हीं नहीं, बल्कि) आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, उसी का है। सभी उसके आज्ञाकारी है ١١٦ वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि "हो जा" और वह हो जाता है ١١٧ जिन्हें ज्ञान नहीं हैं, वे कहते है, "अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता? या कोई निशानी हमारे पास आ जाए।" इसी प्रकार इनसे पहले के लोग भी कह चुके है। इन सबके दिल एक जैसे है। हम खोल-खोलकर निशानियाँ उन लोगों के लिए बयान कर चुके है जो विश्वास करें ١١٨ निश्चित रूप से हमने तुम्हें हक़ के साथ शुभ-सूचना देनेवाला और डरानेवाला बनाकर भेजा। भड़कती आग में पड़नेवालों के विषय में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा ١١٩ न यहूदी तुमसे कभी राज़ी होनेवाले है और न ईसाई जब तक कि तुम अनके पंथ पर न चलने लग जाओ। कह दो, "अल्लाह का मार्गदर्शन ही वास्तविक मार्गदर्शन है।" और यदि उस ज्ञान के पश्चात जो तुम्हारे पास आ चुका है, तुमने उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो अल्लाह से बचानेवाला न तो तुम्हारा कोई मित्र होगा और न सहायक ١٢٠ जिन लोगों को हमने किताब दी है उनमें वे लोग जो उसे उस तरह पढ़ते है जैसा कि उसके पढ़ने का हक़ है, वही उसपर ईमान ला रहे है, और जो उसका इनकार करेंगे, वही घाटे में रहनेवाले है ١٢١ ऐ इसराईल की सन्तान! मेरी उस कृपा को याद करो जो मैंने तुमपर की थी और यह कि मैंने तुम्हें संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की ١٢٢ और उस दिन से डरो, जब कोई न किसी के काम आएगा, न किसी की ओर से अर्थदंड स्वीकार किया जाएगा, और न कोई सिफ़ारिश ही उसे लाभ पहुँचा सकेगी, और न उनको कोई सहायता ही पहुँच सकेगी ١٢٣ और याद करो जब इबराहीम की उसके रब से कुछ बातों में परीक्षा ली तो उसने उसको पूरा कर दिखाया। उसने कहा, "मैं तुझे सारे इनसानों का पेशवा बनानेवाला हूँ।" उसने निवेदन किया, " और मेरी सन्तान में भी।" उसने कहा, "ज़ालिम मेरे इस वादे के अन्तर्गत नहीं आ सकते।" ١٢٤ और याद करो जब हमने इस घर (काबा) को लोगों को लिए केन्द्र और शान्तिस्थल बनाया - और, "इबराहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो!" - और इबराहीम और इसमाईल को ज़िम्मेदार बनाया। "तुम मेरे इस घर को तवाफ़ करनेवालों और एतिकाफ़ करनेवालों के लिए और रुकू और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखो।" ١٢٥ और याद करो जब इबराहीम ने कहा, "ऐ मेरे रब! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासियों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएँ।" कहा, "और जो इनकार करेगा थोड़ा फ़ायदा तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है!" ١٢٦ और याद करो जब इबराहीम और इसमाईल इस घर की बुनियादें उठा रहे थे, (तो उन्होंने प्रार्थना की), "ऐ हमारे रब! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले, निस्संदेह तू सुनता-जानता है ١٢٧ ऐ हमारे रब! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना; और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा क़बूल कर। निस्संदेह तू तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है ١٢٨ ऐ हमारे रब! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे। निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ١٢٩ कौन है जो इबराहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने दुनिया में चुन लिया था और निस्संदेह आख़िरत में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी ١٣٠ क्योंकि जब उससे रब ने कहा, "मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो जा।" उसने कहा, "मैं सारे संसार के रब का मुस्लिम हो गया।" ١٣١ और इसी की वसीयत इबराहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी (अपनी सन्तानों को की) कि, "ऐ मेरे बेटों! अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन (धर्म) चुना है, तो इस्लाम (ईश-आज्ञापालन) को अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारी मृत्यु न हो।" ١٣٢ (क्या तुम इबराहीम के वसीयत करते समय मौजूद थे? या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया? जब उसने बेटों से कहा, "तुम मेरे पश्चात किसकी इबादत करोगे?" उन्होंने कहा, "हम आपके इष्ट-पूज्य और आपके पूर्वज इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ के इष्ट-पूज्य की बन्दगी करेंगे - जो अकेला इष्ट-पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।" ١٣٣ वह एक गिरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसका है, और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारा है। और जो कुछ वे करते रहे उसके विषय में तुमसे कोई पूछताछ न की जाएगी ١٣٤ वे कहते हैं, "यहूदी या ईसाई हो जाओ तो मार्ग पर लोगे।" कहो, "नहीं, बल्कि इबराहीम का पंथ अपनाओ जो एक (अल्लाह) का हो गया था, और वह बहुदेववादियों में से न था।" ١٣٥ कहो, "हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी ओर से उतरी और जो इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उसकी संतान की ओर उतरी, और जो मूसा और ईसा को मिली, और जो सभी नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान की गई। हम उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम केवल उसी के आज्ञाकारी हैं।" ١٣٦ फिर यदि वे उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो उन्होंने मार्ग पा लिया। और यदि वे मुँह मोड़े, तो फिर वही विरोध में पड़े हुए है। अतः तुम्हारी जगह स्वयं अल्लाह उनसे निबटने के लिए काफ़ी है; वह सब कुछ सुनता, जानता है ١٣٧ (कहो,) "अल्लाह का रंग ग्रहण करो, उसके रंग से अच्छा और किसका रंह हो सकता है? और हम तो उसी की बन्दगी करते हैं।" ١٣٨ कहो, "क्या तुम अल्लाह के विषय में हमसे झगड़ते हो, हालाँकि वही हमारा रब भी है, और तुम्हारा रब भी? और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। और हम तो बस निरे उसी के है।" ١٣٩ या तुम कहते हो कि इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान सब के सब यहूदी या ईसाई थे? कहो, "तुम अधिक जानते हो या अल्लाह? और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसके पास अल्लाह की ओर से आई हुई कोई गवाही हो, और वह उसे छिपाए? और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेखबर नहीं है।" ١٤٠ वह एक गिरोह थो जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसके लिए है और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारे लिए है। और तुमसे उसके विषय में न पूछा जाएगा, जो कुछ वे करते रहे है ١٤١ मूर्ख लोग अब कहेंगे, "उन्हें उनके उस क़िबले (उपासना-दिशा) से, जिस पर वे थे किस ची़ज़ ने फेर दिया?" कहो, "पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, वह जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है।" ١٤٢ और इसी प्रकार हमने तुम्हें बीच का एक उत्तम समुदाय बनाया है, ताकि तुम सारे मनुष्यों पर गवाह हो, और रसूल तुमपर गवाह हो। और जिस (क़िबले) पर तुम रहे हो उसे तो हमने केवल इसलिए क़िबला बनाया था कि जो लोग पीठ-पीछे फिर जानेवाले है, उनसे हम उनको अलग जान लें जो रसूल का अनुसरण करते है। और यह बात बहुत भारी (अप्रिय) है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया है। और अल्लाह ऐसा नहीं कि वह तुम्हारे ईमान को अकारथ कर दे, अल्लाह तो इनसानों के लिए अत्यन्त करूणामय, दयावान है ١٤٣ हम आकाश में तुम्हारे मुँह की गर्दिश देख रहे है, तो हम अवश्य ही तुम्हें उसी क़िबले का अधिकारी बना देंगे जिसे तुम पसन्द करते हो। अतः मस्जिदे हराम (काबा) की ओर अपना रूख़ करो। और जहाँ कहीं भी हो अपने मुँह उसी की ओर करो - निश्चय ही जिन लोगों को किताब मिली थी, वे भली-भाँति जानते है कि वही उनके रब की ओर से हक़ है, इसके बावजूद जो कुछ वे कर रहे है अल्लाह उससे बेखबर नहीं है ١٤٤ यदि तुम उन लोगों के पास, जिन्हें किताब दी गई थी, कोई भी निशानी ले आओ, फिर भी वे तुम्हारे क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और तुम भी उसके क़िबले का अनुसरण करने वाले नहीं हो। और वे स्वयं परस्पर एक-दूसरे के क़िबले का अनुसरण करनेवाले नहीं हैं। और यदि तुमने उस ज्ञान के पश्चात, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो निश्चय ही तुम्हारी गणना ज़ालिमों में होगी ١٤٥ जिन लोगों को हमने किताब दी है वे उसे पहचानते है, जैसे अपने बेटों को पहचानते है और उनमें से कुछ सत्य को जान-बूझकर छिपा रहे हैं ١٤٦ सत्य तुम्हारे रब की ओर से है। अतः तुम सन्देह करनेवालों में से कदापि न होगा ١٤٧ प्रत्येक की एक ही दिशा है, वह उसी की ओर मुख किेए हुए है, तो तुम भलाईयों में अग्रसरता दिखाओ। जहाँ कहीं भी तुम होगे अल्लाह तुम सबको एकत्र करेगा। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ١٤٨ और जहाँ से भी तुम निकलों, 'मस्जिदे हराम' (काबा) की ओर अपना मुँह फेर लिया करो। निस्संदेह यही तुम्हारे रब की ओर से हक़ है। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है ١٤٩ जहाँ से भी तुम निकलो, 'मस्जिदे हराम' की ओर अपना मुँह फेर लिया करो, और जहाँ कहीं भी तुम हो उसी की ओर मुँह कर लिया करो, ताकि लोगों के पास तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई हुज्जत बाक़ी न रहे - सिवाय उन लोगों के जो उनमें ज़ालिम हैं, तुम उनसे न डरो, मुझसे ही डरो - और ताकि मैं तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दूँ, और ताकि तुम सीधी राह चलो ١٥٠ जैसाकि हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है, तुम्हें निखारता है, और तुम्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम जानते न थे ١٥١ अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना ١٥٢ ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त। करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते है ١٥٣ और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित है, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता ١٥٤ और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो ١٥٥ जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते है, "निस्संदेह हम अल्लाह ही के है और हम उसी की ओर लौटने वाले है।" ١٥٦ यही लोग है जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भी; और यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं ١٥٧ निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमपा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाडियों) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है ١٥٨ जो लोग हमारी उतारी हुई खुली निशानियों और मार्गदर्शन को छिपाते है, इसके बाद कि हम उन्हें लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर चुके है; वही है जिन्हें अल्लाह धिक्कारता है - और सभी धिक्कारने वाले भी उन्हें धिक्कारते है ١٥٩ सिवाय उनके जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया, और साफ़-साफ़ बयान कर दिया, तो उनकी तौबा मैं क़बूल करूँगा; मैं बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान हूँ ١٦٠ जिन लोगों ने कुफ़्र किया और काफ़िर (इनकार करनेवाले) ही रहकर मरे, वही हैं जिनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और सारे मनुष्यों की, सबकी फिटकार है ١٦١ इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी ١٦٢ तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है, उस कृपाशील और दयावान के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं ١٦٣ निस्संदेह आकाशों और धरती की संरचना में, और रात और दिन की अदला-बदली में, और उन नौकाओं में जो लोगों की लाभप्रद चीज़े लेकर समुद्र (और नदी) में चलती है, और उस पानी में जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर जिसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात जीवित किया और उसमें हर एक (प्रकार के) जीवधारी को फैलाया और हवाओं को गर्दिश देने में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त होते है, उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लें ١٦٤ कुछ लोग ऐसे भी है जो अल्लाह से हटकर दूसरों को उसके समकक्ष ठहराते है, उनसे ऐसा प्रेम करते है जैसा अल्लाह से प्रेम करना चाहिए। और कुछ ईमानवाले है उन्हें सबसे बढ़कर अल्लाह से प्रेम होता है। और ये अत्याचारी (बहुदेववादी) जबकि यातना देखते है, यदि इस तथ्य को जान लेते कि शक्ति सारी की सारी अल्लाह ही को प्राप्त हो और यह कि अल्लाह अत्यन्त कठोर यातना देनेवाला है (तो इनकी नीति कुछ और होती) ١٦٥ जब वे लोग जिनके पीछे वे चलते थे, यातना को देखकर अपने अनुयायियों से विरक्त हो जाएँगे और उनके सम्बन्ध और सम्पर्क टूट जाएँगे ١٦٦ वे लोग जो उनके पीछे चले थे कहेंगे, "काश! हमें एक बार (फिर संसार में लौटना होता तो जिस तरह आज ये हमसे विरक्त हो रहे हैं, हम भी इनसे विरक्त हो जाते।" इस प्रकार अल्लाह उनके लिए संताप बनाकर उन्हें कर्म दिखाएगा और वे आग (जहन्नम) से निकल न सकेंगे ١٦٧ ऐ लोगों! धरती में जो हलाल और अच्छी-सुथरी चीज़ें हैं उन्हें खाओ और शैतान के पदचिन्हों पर न चलो। निस्संदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है ١٦٨ वह तो बस तुम्हें बुराई और अश्लीलता पर उकसाता है और इसपर कि तुम अल्लाह पर थोपकर वे बातें कहो जो तुम नहीं जानते ١٦٩ और जब उनसे कहा जाता है, "अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।" तो कहते है, "नहीं बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों? ١٧٠ इन इनकार करनेवालों की मिसाल ऐसी है जैसे कोई ऐसी चीज़ों को पुकारे जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ न सुनती और समझती हो। ये बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धें हैं; इसलिए ये कुछ भी नहीं समझ सकते ١٧١ ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी-सुथरी चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की हैं उनमें से खाओ और अल्लाह के आगे कृतज्ञता दिखलाओ, यदि तुम उसी की बन्दगी करते हो ١٧٢ उसने तो तुमपर केवल मुर्दार और ख़ून और सूअर का माँस और जिस पर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। इसपर भी जो बहुत मजबूर और विवश हो जाए, वह अवज्ञा करनेवाला न हो और न सीमा से आगे बढ़नेवाला हो तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ١٧٣ जो लोग उस चीज़ को छिपाते है जो अल्लाह ने अपनी किताब में से उतारी है और उसके बदले थोड़े मूल्य का सौदा करते है, वे तो बस आग खाकर अपने पेट भर रहे है; और क़ियामत के दिन अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न उन्हें निखारेगा; और उनके लिए दुखद यातना है ١٧٤ यहीं लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले पथभ्रष्टका मोल ली; और क्षमा के बदले यातना के ग्राहक बने। तो आग को सहन करने के लिए उनका उत्साह कितना बढ़ा हुआ है! ١٧٥ वह (यातना) इसलिए होगी कि अल्लाह ने तो हक़ के साथ किताब उतारी, किन्तु जिन लोगों ने किताब के मामले में विभेद किया वे हठ और विरोध में बहुत दूर निकल गए ١٧٦ नेकी केवल यह नहीं है कि तुम अपने मुँह पूरब और पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि नेकी तो उसकी नेकी है जो अल्लाह अन्तिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया और माल, उसके प्रति प्रेम के बावजूद नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और माँगनेवालों को दिया और गर्दनें छुड़ाने में भी, और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अपने वचन को ऐसे लोग पूरा करनेवाले है जब वचन दें; और तंगी और विशेष रूप से शारीरिक कष्टों में और लड़ाई के समय में जमनेवाले हैं, तो ऐसे ही लोग है जो सच्चे सिद्ध हुए और वही लोग डर रखनेवाले हैं ١٧٧ ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीके से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भो जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है ١٧٨ ऐ बुद्धि और समझवालों! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो ١٧٩ जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए, यदि वह कुछ माल छोड़ रहा हो, तो माँ-बाप और नातेदारों को भलाई की वसीयत करना तुमपर अनिवार्य किया गया। यह हक़ है डर रखनेवालों पर ١٨٠ तो जो कोई उसके सुनने के पश्चात उसे बदल डाले तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों पर होगा जो इसे बदलेंगे। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुननेवाला और जाननेवाला है ١٨١ फिर जिस किसी वसीयत करनेवाले को न्याय से किसी प्रकार के हटने या हक़़ मारने की आशंका हो, इस कारण उनके (वारिसों के) बीच सुधार की व्यवस्था कर दें, तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है ١٨٢ ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ ١٨٣ गिनती के कुछ दिनों के लिए - इसपर भी तुममें कोई बीमार हो, या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में संख्या पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफ़िरों) को इसकी (मुहताजों को खिलाने की) सामर्थ्य हो, उनके ज़िम्मे बदलें में एक मुहताज का खाना है। फिर जो अपनी ख़ुशी से कुछ और नेकी करे तो यह उसी के लिए अच्छा है और यह कि तुम रोज़ा रखो तो तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जानो ١٨٤ रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथा। अतः तुममें जो कोई इस महीने में मौजूद हो उसे चाहिए कि उसके रोज़े रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नहीं चाहता, (वह तुम्हारे लिए आसानी पैदा कर रहा है) और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो ١٨٥ और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे सम्बन्ध में पूछें, तो मैं तो निकट ही हूँ, पुकार का उत्तर देता हूँ, जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा लें ١٨٦ तुम्हारे लिए रोज़ो की रातों में अपनी औरतों के पास जाना जायज़ (वैध) हुआ। वे तुम्हारे परिधान (लिबास) हैं और तुम उनका परिधान हो। अल्लाह को मालूम हो गया कि तुम लोग अपने-आपसे कपट कर रहे थे, तो उसने तुमपर कृपा की और तुम्हें क्षमा कर दिया। तो अब तुम उनसे मिलो-जुलो और अल्लाह ने जो कुछ तुम्हारे लिए लिख रखा है, उसे तलब करो। और खाओ और पियो यहाँ तक कि तुम्हें उषाकाल की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से स्पष्टा दिखाई दे जाए। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और जब तुम मस्जिदों में 'एतकाफ़' की हालत में हो, तो तुम उनसे न मिलो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं। अतः इनके निकट न जाना। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे डर रखनेवाले बनें ١٨٧ और आपस में तुम एक-दूसरे के माल को अवैध रूप से न खाओ, और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि (हक़ मारकर) लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको ١٨٨ वे तुमसे (प्रतिष्ठित) महीनों के विषय में पूछते है। कहो, "वे तो लोगों के लिए और हज के लिए नियत है। और यह कोई ख़ूबी और नेकी नहीं हैं कि तुम घरों में उनके पीछे से आओ, बल्कि नेकी तो उसकी है जो (अल्लाह का) डर रखे। तुम घरों में उनके दरवाड़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो ١٨٩ और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता ١٩٠ और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है ١٩١ फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, अत्यन्त दयावान है ١٩٢ तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं ١٩٣ प्रतिष्ठित महीना बराबर है प्रतिष्ठित महिने के, और समस्त प्रतिष्ठाओं का भी बराबरी का बदला है। अतः जो तुमपर ज़्यादती करे, तो जैसी ज़्यादती वह तुम पर के, तुम भी उसी प्रकार उससे ज़्यादती का बदला लो। और अल्लाह का डर रखो और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है ١٩٤ और अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो और अपने ही हाथों से अपने-आपकोतबाही में न डालो, और अच्छे से अच्छा तरीक़ा अपनाओ। निस्संदेह अल्लाह अच्छे से अच्छा काम करनेवालों को पसन्द करता है ١٩٥ और हज और उमरा जो कि अल्लाह के लिए है, पूरे करो। फिर यदि तुम घिर जाओ, तो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश कर दो। और अपने सिर न मूड़ो जब तक कि क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुँच जाए, किन्तु जो व्यक्ति तुममें बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो, तो रोज़े या सदक़ा या क़रबानी के रूप में फ़िद्याी देना होगा। फिर जब तुम पर से ख़तरा टल जाए, तो जो व्यक्ति हज तक उमरा से लाभान्वित हो, जो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश करे, और जिसको उपलब्ध न हो तो हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े रखे और सात दिन के रोज़े जब तुम वापस हो, ये पूरे दस हुए। यह उसके लिए है जिसके बाल-बच्चे मस्जिदे हराम के निकट न रहते हों। अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है ١٩٦ हज के महीने जाने-पहचाने और निश्चित हैं, तो जो इनमें हज करने का निश्चय करे, को हज में न तो काम-वासना की बातें हो सकती है और न अवज्ञा और न लड़ाई-झगड़े की कोई बात। और जो भलाई के काम भी तुम करोंगे अल्लाह उसे जानता होगा। और (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है। और ऐ बुद्धि और समझवालो! मेरा डर रखो ١٩٧ इसमे तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने रब का अनुग्रह तलब करो। फिर जब तुम अरफ़ात से चलो तो 'मशअरे हराम' (मुज़दल्फ़ा) के निकट ठहरकर अल्लाह को याद करो, और उसे याद करो जैसाकि उसने तुम्हें बताया है, और इससे पहले तुम पथभ्रष्ट थे ١٩٨ इसके पश्चात जहाँ से और सब लोग चलें, वहीं से तुम भी चलो, और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ١٩٩ फिर जब तुम अपनी हज सम्बन्धी रीतियों को पूरा कर चुको तो अल्लाह को याद करो जैसे अपने बाप-दादा को याद करते रहे हो, बल्कि उससे भी बढ़कर याद करो। फिर लोगों सें कोई तो ऐसा है जो कहता है, "हमारे रब! हमें दुनिया में दे दो।" ऐसी हालत में आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं ٢٠٠ और उनमें कोई ऐसा है जो कहता है, "हमारे रब! हमें प्रदान कर दुनिया में भी अच्छी दशा और आख़िरत में भी अच्छा दशा, और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।" ٢٠١ ऐसे ही लोग है कि उन्होंने जो कुछ कमाया है उसकी जिन्स का हिस्सा उनके लिए नियत है। और अल्लाह जल्द ही हिसाब चुकानेवाला है ٢٠٢ और अल्लाह की याद में गिनती के ये कुछ दिन व्यतीत करो। फिर जो कोई जल्दी करके दो ही दिन में कूच करे तो इसमें उसपर कोई गुनाह नहीं। और जो ठहरा रहे तो इसमें भी उसपर कोई गुनाह नहीं। यह उसके लिेए है जो अल्लाह का डर रखे। और अल्लाह का डर रखो और जान रखो कि उसी के पास तुम इकट्ठा होगे ٢٠٣ लोगों में कोई तो ऐसा है कि इस सांसारिक जीवन के विषय में उसकी बाते तुम्हें बहुत भाती है, उस (खोट) के बावजूद जो उसके दिल में होती है, वह अल्लाह को गवाह ठहराता है और झगड़े में वह बड़ा हठी है ٢٠٤ और जब वह लौटता है, तो धरती में इसलिए दौड़-धूप करता है कि इसमें बिगाड़ पैदा करे और खेती और नस्ल को तबाह करे, जबकि अल्लाह बिगाड़ को पसन्द नहीं करता ٢٠٥ और जब उससे कहा जाता है, "अल्लाह से डर", तो अहंकार उसे और गुनाह पर जमा देता है। अतः उसके लिए तो जहन्नम ही काफ़ी है, और वह बहुत-ही बुरी शय्या है! ٢٠٦ और लोगों में वह भी है जो अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधन की चाह में अपनी जान खता देता है। अल्लाह भी अपने ऐसे बन्दों के प्रति अत्यन्त करुणाशील है ٢٠٧ ऐ ईमान लानेवालो! तुम सब इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान के पदचिन्ह पर न चलो। वह तो तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है ٢٠٨ फिर यदि तुम उन स्पष्टा दलीलों के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुकी है, फिसल गए, तो भली-भाँति जान रखो कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ٢٠٩ क्या वे (इसराईल की सन्तान) बस इसकी प्रतीक्षा कर रहे है कि अल्लाह स्वयं ही बादलों की छायों में उनके सामने आ जाए और फ़रिश्ते भी, हालाँकि बात तय कर दी गई है? मामले तो अल्लाह ही की ओर लौटते है ٢١٠ इसराईल की सन्तान से पूछो, हमने उन्हें कितनी खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की। और जो अल्लाह की नेमत को इसके बाद कि वह उसे पहुँच चुकी हो बदल डाले, तो निस्संदेह अल्लाह भी कठोर दंड देनेवाला है ٢١١ इनकार करनेवाले सांसारिक जीवन पर रीझे हुए है और ईमानवालों का उपहास करते है, जबकि जो लोग अल्लाह का डर रखते है, वे क़ियामत के दिन उनसे ऊपर होंगे। अल्लाह जिस चाहता है बेहिसाब देता है ٢١٢ सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का जिनमें वे विभेद कर रहे है, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थी। अतः ईमानवालों को अल्लाह ने अपनी अनूज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है ٢١٣ क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश पा जाओगे, जबकि अभी तुम पर वह सब कुछ नहीं बीता है जो तुमसे पहले के लोगों पर बीत चुका? उनपर तंगियाँ और तकलीफ़े आई और उन्हें हिला मारा गया यहाँ तक कि रसूल बोल उठे और उनके साथ ईमानवाले भी कि अल्लाह की सहायता कब आएगी? जान लो! अल्लाह की सहायता निकट है ٢١٤ वे तुमसे पूछते है, "कितना ख़र्च करें?" कहो, "(पहले यह समझ लो कि) जो माल भी तुमने ख़र्च किया है, वह तो माँ-बाप, नातेदारों और अनाथों, और मुहताजों और मुसाफ़िरों के लिए ख़र्च हुआ है। और जो भलाई भी तुम करो, निस्संदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जान लेगा। ٢١٥ तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।" ٢١٦ वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते है। कहो, "उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की स्पष्ट में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।" और उसका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहे, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग है जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है, वे उसी में सदैव रहेंगे ٢١٧ रहे वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में घर-बार छोड़ा और जिहाद किया, वहीं अल्लाह की दयालुता की आशा रखते है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ٢١٨ तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते है। कहो, "उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी है, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।" और वे तुमसे पूछते है, "कितना ख़र्च करें?" कहो, "जो आवश्यकता से अधिक हो।" इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आख़िरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो। ٢١٩ और वे तुमसे अनाथों के विषय में पूछते है। कहो, "उनके सुधार की जो रीति अपनाई जाए अच्छी है। और यदि तुम उन्हें अपने साथ सम्मिलित कर लो तो वे तुम्हारे भाई-बन्धु ही हैं। और अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवाले को बचाव पैदा करनेवाले से अलग पहचानता है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुमको ज़हमत (कठिनाई) में डाल देता। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" ٢٢٠ और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियाँ) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला गुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते है और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें ٢٢١ और वे तुमसे मासिक-धर्म के विषय में पूछते है। कहो, "वह एक तकलीफ़ और गन्दगी की चीज़ है। अतः मासिक-धर्म के दिनों में स्त्रियों से अलग रहो और उनके पास न जाओ, जबतक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएँ। फिर जब वे भली-भाँति पाक-साफ़ हो जाए, तो जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है, उनके पास आओ। निस्संदेह अल्लाह बहुत तौबा करनेवालों को पसन्द करता है और वह उन्हें पसन्द करता है जो स्वच्छता को पसन्द करते है ٢٢٢ तुम्हारी स्त्रियों तुम्हारी खेती है। अतः जिस प्रकार चाहो तुम अपनी खेती में आओ और अपने लिए आगे भेजो; और अल्लाह से डरते रहो; भली-भाँति जान ले कि तुम्हें उससे मिलना है; और ईमान लानेवालों को शुभ-सूचना दे दो ٢٢٣ अपने नेक और धर्मपरायण होने और लोगों के मध्य सुधारक होने के सिलसिले में अपनी क़समों के द्वारा अल्लाह को आड़ और निशाना न बनाओ कि इन कामों को छोड़ दो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है ٢٢٤ अल्लाह तुम्हें तुम्हारी ऐसी कसमों पर नहीं पकड़ेगा जो यूँ ही मुँह से निकल गई हो, लेकिन उन क़समों पर वह तुम्हें अवश्य पकड़ेगा जो तुम्हारे दिल के इरादे का नतीजा हों। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है ٢٢٥ जो लोग अपनी स्त्रियों से अलग रहने की क़सम खा बैठें, उनके लिए चार महीने की प्रतिक्षा है। फिर यदि वे पलट आएँ, तो अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है ٢٢٦ और यदि वे तलाक़ ही की ठान लें, तो अल्लाह भी सुननेवाला भली-भाँति जाननेवाला है ٢٢٧ और तलाक़ पाई हुई स्त्रियाँ तीन हैज़ (मासिक-धर्म) गुज़रने तक अपने-आप को रोके रखे, और यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखती है तो उनके लिए यह वैध न होगा कि अल्लाह ने उनके गर्भाशयों में जो कुछ पैदा किया हो उसे छिपाएँ। इस बीच उनके पति, यदि सम्बन्धों को ठीक कर लेने का इरादा रखते हों, तो वे उन्हें लौटा लेने के ज़्यादा हक़दार है। और उन पत्नियों के भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं, जैसी उन पर ज़िम्मेदारियाँ डाली गई है। और पतियों को उनपर एक दर्जा प्राप्त है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ٢٢٨ तलाक़ दो बार है। फिर सामान्य नियम के अनुसार (स्त्री को) रोक लिया जाए या भले तरीक़े से विदा कर दिया जाए। और तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उसमें से कुछ ले लो, सिवाय इस स्थिति के कि दोनों को डर हो कि अल्लाह की (निर्धारित) सीमाओं पर क़ायम न रह सकेंगे तो यदि तुमको यह डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओ पर क़ायम न रहेंगे तो स्त्री जो कुछ देकर छुटकारा प्राप्त करना चाहे उसमें उन दोनो के लिए कोई गुनाह नहीं। ये अल्लाह की सीमाएँ है। अतः इनका उल्लंघन न करो। और जो कोई अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो ऐसे लोग अत्याचारी है ٢٢٩ (दो तलाक़ो के पश्चात) फिर यदि वह उसे तलाक़ दे दे, तो इसके पश्चात वह उसके लिए वैध न होगी, जबतक कि वह उसके अतिरिक्त किसी दूसरे पति से निकाह न कर ले। अतः यदि वह उसे तलाक़ दे दे तो फिर उन दोनों के लिए एक-दूसरे को पलट आने में कोई गुनाह न होगा, यदि वे समझते हो कि अल्लाह की सीमाओं पर क़ायम रह सकते है। और ये अल्लाह कि निर्धारित की हुई सीमाएँ है, जिन्हें वह उन लोगों के लिए बयान कर रहा है जो जानना चाहते हो ٢٣٠ और यदि जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निश्चित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, जो सामान्य नियम के अनुसार उन्हें रोक लो या सामान्य नियम के अनुसार उन्हें विदा कर दो। और तुम उन्हें नुक़सान पहुँचाने के ध्येय से न रोको कि ज़्यादती करो। और जो ऐसा करेगा, तो उसने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। और अल्लाह की आयतों को परिहास का विषय न बनाओ, और अल्लाह की कृपा जो तुम पर हुई है उसे याद रखो और उस किताब और तत्वदर्शिता (हिकमत) को याद रखो जो उसने तुम पर उतारी है, जिसके द्वारा वह तुम्हें नसीहत करता है। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह हर चीज को जाननेवाला है ٢٣١ और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें अपने होनेवाले दूसरे पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि वे सामान्य नियम के अनुसार परस्पर रज़ामन्दी से मामला तय करें। यह नसीहत तुममें से उसको की जा रही है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखता है। यही तुम्हारे लिए ज़्यादा बरकतवाला और सुथरा तरीक़ा है। और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते ٢٣٢ और जो कोई पूरी अवधि तक (बच्चे को) दूध पिलवाना चाहे, तो माएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाएँ। और वह जिसका बच्चा है, सामान्य नियम के अनुसार उनके खाने और उनके कपड़े का ज़िम्मेदार है। किसी पर बस उसकी अपनी समाई भर ही ज़िम्मेदारी है, न तो कोई माँ अपने बच्चे के कारण (बच्चे के बाप को) नुक़सान पहुँचाए और न बाप अपने बच्चे के कारण (बच्चे की माँ को) नुक़सान पहुँचाए। और इसी प्रकार की ज़िम्मेदारी उसके वारिस पर भी आती है। फिर यदि दोनों पारस्परिक स्वेच्छा और परामर्श से दूध छुड़ाना चाहें तो उनपर कोई गुनाह नहीं। और यदि तुम अपनी संतान को किसी अन्य स्त्री से दूध पिलवाना चाहो तो इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं, जबकि तुमने जो कुछ बदले में देने का वादा किया हो, सामान्य नियम के अनुसार उसे चुका दो। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है ٢٣٣ और तुममें से जो लोग मर जाएँ और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, तो वे पत्नियों अपने-आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें, उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है ٢٣٤ और इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं जो तुम उन औरतों को विवाह के सन्देश सांकेतिक रूप से दो या अपने मन में छिपाए रखो। अल्लाह जानता है कि तुम उन्हें याद करोगे, परन्तु छिपकर उन्हें वचन न देना, सिवाय इसके कि सामान्य नियम के अनुसार कोई बात कह दो। और जब तक निर्धारित अवधि (इद्दत) पूरी न हो जाए, विवाह का नाता जोड़ने का निश्चय न करो। जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे मन की बात भी जानता है। अतः उससे सावधान रहो और अल्लाह अत्यन्त क्षमा करनेवाला, सहनशील है ٢٣٥ यदि तुम स्त्रियों को इस स्थिति मे तलाक़ दे दो कि यह नौबत पेश न आई हो कि तुमने उन्हें हाथ लगाया हो और उनका कुछ हक़ (मह्रन) निश्चित किया हो, तो तुमपर कोई भार नहीं। हाँ, सामान्य नियम के अनुसार उन्हें कुछ ख़र्च दो - समाई रखनेवाले पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार और तंगदस्त पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार अनिवार्य है - यह अच्छे लोगों पर एक हक़ है ٢٣٦ और यदि तुम उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो, किन्तु उसका मह्र- निश्चित कर चुके हो, तो जो मह्रह तुमने निश्चित किया है उसका आधा अदा करना होगा, यह और बात है कि वे स्वयं छोड़ दे या पुरुष जिसके हाथ में विवाह का सूत्र है, वह नर्मी से काम ले (और मह्र पूरा अदा कर दे) । और यह कि तुम नर्मी से काम लो तो यह परहेज़गारी से ज़्यादा क़रीब है और तुम एक-दूसरे को हक़ से बढ़कर देना न भूलो। निश्चय ही अल्लाह उसे देख रहा है, जो तुम करते हो ٢٣٧ सदैव नमाज़ो की और अच्छी नमाज़ों की पाबन्दी करो, और अल्लाह के आगे पूरे विनीत और शान्तभाव से खड़े हुआ करो ٢٣٨ फिर यदि तुम्हें (शत्रु आदि का) भय हो, तो पैदल या सवार जिस तरह सम्भव हो नमाज़ पढ़ लो। फिर जब निश्चिन्त हो तो अल्लाह को उस प्रकार याद करो जैसाकि उसने तुम्हें सिखाया है, जिसे तुम नहीं जानते थे ٢٣٩ और तुममें से जिन लोगों की मृत्यु हो जाए और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाए, अर्थात अपनी पत्नियों के हक़ में यह वसीयत छोड़ जाए कि घर से निकाले बिना एक वर्ष तक उन्हें ख़र्च दिया जाए, तो यदि वे निकल जाएँ तो अपने लिए सामान्य नियम के अनुसार वे जो कुछ भी करें उसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है ٢٤٠ और तलाक़ पाई हुई स्त्रियों को सामान्य नियम के अनुसार (इद्दत की अवधि में) ख़र्च भी मिलना चाहिए। यह डर रखनेवालो पर एक हक़ है ٢٤١ इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझ से काम लो ٢٤٢ क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो हज़ारों की संख्या में होने पर भी मृत्यु के भय से अपने घर-बार छोड़कर निकले थे? तो अल्लाह ने उनसे कहा, "मृत्यु प्राय हो जाओ तुम।" फिर उसने उन्हें जीवन प्रदान किया। अल्लाह तो लोगों के लिए उदार अनुग्राही है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखलाते ٢٤٣ और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाले है ٢٤٤ कौन है जो अल्लाह को अच्छा ऋण दे कि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना बढ़ा दे? और अल्लाह ही तंगी भी देता है और कुशादगी भी प्रदान करता है, और उसी की ओर तुम्हें लौटना है ٢٤٥ क्या तुमने मूसा के पश्चात इसराईल की सन्तान के सरदारों को नहीं देखा, जब उन्होंने अपने एक नबी से कहा, "हमारे लिए एक सम्राट नियुक्त कर दो ताकि हम अल्लाह के मार्ग में युद्ध करें?" उसने कहा, "यदि तुम्हें लड़ाई का आदेश दिया जाए तो क्या तुम्हारे बारे में यह सम्भावना नहीं है कि तुम न लड़ो?" वे कहने लगे, "हम अल्लाह के मार्ग में क्यों न लड़े, जबकि हम अपने घरों से निकाल दिए गए है और अपने बाल-बच्चों से भी अलग कर दिए गए है?" - फिर जब उनपर युद्ध अनिवार्य कर दिया गया तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए। और अल्लाह ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है। - ٢٤٦ उनसे नबी ने उनसे कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत को सम्राट नियुक्त किया है।" बोले, "उसकी बादशाही हम पर कैसे हो सकती है, जबबकि हम उसके मुक़ाबले में बादशाही के ज़्यादा हक़दार है और जबकि उस माल की कुशादगी भी प्राप्त नहीं है?" उसने कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे मुक़ाबले में उसको ही चुना है और उसे ज्ञान में और शारीरिक क्षमता में ज़्यादा कुशादगी प्रदान की है। अल्लाह जिसको चाहे अपना राज्य प्रदान करे। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है।" ٢٤٧ उनके नबी ने उनसे कहा, "उसकी बादशाही की निशानी यह है कि वह संदूक तुम्हारे पर आ जाएगा, जिसमें तुम्हारे रह की ओर से सकीनत (प्रशान्ति) और मूसा के लोगों और हारून के लोगों की छोड़ी हुई यादगारें हैं, जिसको फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे। यदि तुम ईमानवाले हो तो, निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है।" ٢٤٨ फिर तब तालूत सेनाएँ लेकर चला तो उनने कहा, "अल्लाह निश्चित रूप से एक नदी द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेनेवाला है। तो जिसने उसका पानी पी लिया, वह मुझमें से नहीं है और जिसने उसको नहीं चखा, वही मुझमें से है। यह और बात है कि कोई अपने हाथ से एक चुल्लू भर ले ले।" फिर उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सभी ने उसका पानी पी लिया, फिर जब तालूत और ईमानवाले जो उसके साथ थे नदी पार कर गए तो कहने लगे, "आज हममें जालूत और उसकी सेनाओं का मुक़ाबला करने की शक्ति नहीं हैं।" इस पर लोगों ने, जो समझते थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, कहा, "कितनी ही बार एक छोटी-सी टुकड़ी ने अल्लाह की अनुज्ञा से एक बड़े गिरोह पर विजय पाई है। अल्लाह तो जमनेवालो के साथ है।" ٢٤٩ और जब वे जालूत और उसकी सेनाओं के मुक़ाबले पर आए तो कहा, "ऐ हमारे रब! हमपर धैर्य उडेल दे और हमारे क़दम जमा दे और इनकार करनेवाले लोगों पर हमें विजय प्रदान कर।" ٢٥٠ अन्ततः अल्लाह की अनुज्ञा से उन्होंने उनको पराजित कर दिया और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया, और अल्लाह ने उसे राज्य और तत्वदर्शिता (हिकमत) प्रदान की, जो कुछ वह (दाऊद) चाहे, उससे उसको अवगत कराया। और यदि अल्लाह मनुष्यों के एक गिरोह को दूसरे गिरोह के द्वारा हटाता न रहता तो धरती की व्यवस्था बिगड़ जाती, किन्तु अल्लाह संसारवालों के लिए उदार अनुग्राही है ٢٥١ ये अल्लाह की सच्ची आयतें है जो हम तुम्हें (सोद्देश्य) सुना रहे है और निश्चय ही तुम उन लोगों में से हो, जो रसूस बनाकर भेजे गए है ٢٥٢ ये रसूल ऐसे हुए है कि इनमें हमने कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें कुछ से तो अल्लाह ने बातचीत की और इनमें से कुछ को दर्जों की स्पष्ट से उच्चता प्रदान की। और मरयम के बेटे ईसा को हमने खुली निशानियाँ दी और पवित्र आत्मा से उसकी सहायता की। और यदि अल्लाह चाहता तो वे लोग, जो उनके पश्चात हुए, खुली निशानियाँ पा लेने के बाद परस्पर न लड़ते। किन्तु वे विभेद में पड़ गए तो उनमें से कोई तो ईमान लाया और उनमें से किसी ने इनकार की नीति अपनाई। और यदि अल्लाह चाहता तो वे परस्पर न लड़ते, परन्तु अल्लाह जो चाहता है, करता है ٢٥٣ ऐ ईमान लानेवालो! हमने जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें से ख़र्च करो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मित्रता होगी और न कोई सिफ़ारिश। ज़ालिम वही है, जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई है ٢٥٤ अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह जीवन्त-सत्ता है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा। उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है ٢٥٥ धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सही बात नासमझी की बात से अलग होकर स्पष्ट हो गई है। तो अब जो कोई बढ़े हुए सरकश को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान लाए, उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटनेवाला नहीं। अल्लाह सब कुछ सुनने, जाननेवाला है ٢٥٦ जो लोग ईमान लाते है, अल्लाह उनका रक्षक और सहायक है। वह उन्हें अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया तो उनके संरक्षक बढ़े हुए सरकश है। वे उन्हें प्रकाश से निकालकर अँधेरों की ओर ले जाते है। वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। वे उसी में सदैव रहेंगे ٢٥٧ क्या तुमने उनको नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके 'रब' के सिलसिले में झगड़ा किया था, इस कारण कि अल्लाह ने उसको राज्य दे रखा था? जब इबराहीम ने कहा, "मेरा 'रब' वह है जो जिलाता और मारता है।" उसने कहा, "मैं भी तो जिलाता और मारता हूँ।" इबराहीम ने कहा, "अच्छा तो अल्लाह सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ।" इसपर वह अधर्मी चकित रह गया। अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता ٢٥٨ या उस जैसे (व्यक्ति) को नहीं देखा, जिसका एक ऐसी बस्ती पर से गुज़र हुआ, जो अपनी छतों के बल गिरी हुई थी। उसने कहा, "अल्लाह इसके विनष्ट हो जाने के पश्चात इसे किस प्रकार जीवन प्रदान करेगा?" तो अल्लाह ने उसे सौ वर्ष की मृत्यु दे दी, फिर उसे उठा खड़ा किया। कहा, "तू कितनी अवधि तक इस अवस्था नें रहा।" उसने कहा, "मैं एक या दिन का कुछ हिस्सा रहा।" कहा, "नहीं, बल्कि तू सौ वर्ष रहा है। अब अपने खाने और पीने की चीज़ों को देख ले, उन पर समय का कोई प्रभाव नहीं, और अपने गधे को भी देख, और यह इसलिए कह रहे है ताकि हम तुझे लोगों के लिए एक निशानी बना दें और हड्डियों को देख कि किस प्रकार हम उन्हें उभारते है, फिर, उनपर माँस चढ़ाते है।" तो जब वास्तविकता उस पर प्रकट हो गई तो वह पुकार उठा, " मैं जानता हूँ कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" ٢٥٩ और याद करो जब इबराहीम ने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे दिखा दे, तू मुर्दों को कैसे जीवित करेगा?" कहा," क्या तुझे विश्वास नहीं?" उसने कहा,"क्यों नहीं, किन्तु निवेदन इसलिए है कि मेरा दिल संतुष्ट हो जाए।" कहा, "अच्छा, तो चार पक्षी ले, फिर उन्हें अपने साथ भली-भाँति हिला-मिला से, फिर उनमें से प्रत्येक को एक-एक पर्वत पर रख दे, फिर उनको पुकार, वे तेरे पास लपककर आएँगे। और जान ले कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" ٢٦٠ जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, उनकी उपमा ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हो। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है ٢٦١ जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, फिर ख़र्च करके उसका न एहसान जताते है और न दिल दुखाते है, उनका बदला उनके अपने रब के पास है। और न तो उनके लिए कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे ٢٦٢ एक भली बात कहनी और क्षमा से काम लेना उस सदक़े से अच्छा है, जिसके पीछे दुख हो। और अल्लाह अत्यन्कृत निस्पृह (बेनियाज़), सहनशील है ٢٦٣ ऐ ईमानवालो! अपने सदक़ो को एहसान जताकर और दुख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल ख़र्च करता है और अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। तो उसकी हालत उस चट्टान जैसी है जिसपर कुछ मिट्टी पड़ी हुई थी, फिर उस पर ज़ोर की वर्षा हुई और उसे साफ़ चट्टान की दशा में छोड़ गई। ऐसे लोग अपनी कमाई कुछ भी प्राप्त नहीं करते। और अल्लाह इनकार की नीति अपनानेवालों को मार्ग नहीं दिखाता ٢٦٤ और जो लोग अपने माल अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधनों की तलब में और अपने दिलों को जमाव प्रदान करने के कारण ख़र्च करते है उनकी हालत उस बाग़़ की तरह है जो किसी अच्छी और उर्वर भूमि पर हो। उस पर घोर वर्षा हुई तो उसमें दुगुने फल आए। फिर यदि घोर वर्षा उस पर नहीं हुई, तो फुहार ही पर्याप्त होगी। तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसे देख रहा है ٢٦٥ क्या तुममें से कोई यह चाहेगा कि उसके पास ख़जूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे नहरें बह रही हो, वहाँ उसे हर प्रकार के फल प्राप्त हो और उसका बुढ़ापा आ गया हो और उसके बच्चे अभी कमज़ोर ही हों कि उस बाग़ पर एक आग भरा बगूला आ गया, और वह जलकर रह गया? इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे सामने आयतें खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि सोच-विचार करो ٢٦٦ ऐ ईमान लानेवालो! अपनी कमाई को पाक और अच्छी चीज़ों में से ख़र्च करो और उन चीज़ों में से भी जो हमने धरती से तुम्हारे लिए निकाली है। और देने के लिए उसके ख़राब हिस्से (के देने) का इरादा न करो, जबकि तुम स्वयं उसे कभी न लोगे। यह और बात है कि उसको लेने में देखी-अनदेखी कर जाओ। और जान लो कि अल्लाह निस्पृह, प्रशंसनीय है ٢٦٧ शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है, जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार कृपा का तुम्हें वचन देता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है ٢٦٨ वह जिसे चाहता है तत्वदर्शिता प्रदान करता है और जिसे तत्वदर्शिता प्राप्त हुई उसे बड़ी दौलत मिल गई। किन्तु चेतते वही है जो बुद्धि और समझवाले है ٢٦٩ और तुमने जो कुछ भी ख़र्च किया और जो कुछ भी नज़र (मन्नत) की हो, निस्सन्देह अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा ٢٧٠ यदि तुम खुले रूप मे सदक़े दो तो यह भी अच्छा है और यदि उनको छिपाकर मुहताजों को दो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। और यह तुम्हारे कितने ही गुनाहों को मिटा देगा। और अल्लाह को उसकी पूरी ख़बर है, जो कुछ तुम करते हो ٢٧١ उन्हें मार्ग पर ला देने का दायित्व तुम पर नहीं है, बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है। और जो कुछ भी माल तुम ख़र्च करोगे, वह तुम्हारे अपने ही भले के लिए होगा और तुम अल्लाह के (बताए हुए) उद्देश्य के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य से ख़र्च न करो। और जो माल भी तुम्हें तुम ख़र्च करोगे, वह पूरा-पूरा तुम्हें चुका दिया जाएगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा ٢٧٢ यह उन मुहताजों के लिए है जो अल्लाह के मार्ग में घिर गए कि धरती में (जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धूप नहीं कर सकते। उनके स्वाभिमान के कारण अपरिचित व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है। तुम उन्हें उनके लक्षणो से पहचान सकते हो। वे लिपटकर लोगों से नहीं माँगते। जो माल भी तुम ख़र्च करोगे, वह अल्लाह को ज्ञात होगा ٢٧٣ जो लोग अपने माल रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें, उनका बदला तो उनके रब के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे ٢٧٤ और लोग ब्याज खाते है, वे बस इस प्रकार उठते है जिस प्रकार वह क्यक्ति उठता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो और यह इसलिए कि उनका कहना है, "व्यापार भी तो ब्याज के सदृश है," जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है। अतः जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया, तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है। और जिसने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। उसमें वे सदैव रहेंगे ٢٧٥ अल्लाह ब्याज को घटाता और मिटाता है और सदक़ों को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी अकृतज्ञ, हक़ मारनेवाले को पसन्द नहीं करता ٢٧٦ निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और नमाज़ क़ायम की्य और ज़कात दी, उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है, और उन्हें न कोई भय हो और न वे शोकाकुल होंगे ٢٧٧ ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमानवाले हो ٢٧٨ फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए ख़बरदार हो जाओ। और यदि तौबा कर लो तो अपना मूलधन लेने का तुम्हें अधिकार है। न तुम अन्याय करो और न तुम्हारे साथ अन्याय किया जाए ٢٧٩ और यदि कोई तंगी में हो तो हाथ खुलने तक मुहलत देनी होगी; और सदक़ा कर दो (अर्थात मूलधन भी न लो) तो यह तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जान सको ٢٨٠ और उस दिन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटोगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा ٢٨١ ऐ ईमान लानेवालो! जब किसी निश्चित अवधि के लिए आपस में ऋण का लेन-देन करो तो उसे लिख लिया करो और चाहिए कि कोई लिखनेवाला तुम्हारे बीच न्यायपूर्वक (दस्तावेज़) लिख दे। और लिखनेवाला लिखने से इनकार न करे; जिस प्रकार अल्लाह ने उसे सिखाया है, उसी प्रकार वह दूसरों के लिए लिखने के काम आए और बोलकर वह लिखाए जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो। और उसे अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखना चाहिए और उसमें कोई कमी न करनी चाहिए। फिर यदि वह व्यक्ति जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो, कम समझ या कमज़ोर हो या वह बोलकर न लिखा सकता हो तो उसके संरक्षक को चाहिए कि न्यायपूर्वक बोलकर लिखा दे। और अपने पुरुषों में से दो गवाहो को गवाह बना लो और यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ, जिन्हें तुम गवाह के लिए पसन्द करो, गवाह हो जाएँ (दो स्त्रियाँ इसलिए रखी गई है) ताकि यदि एक भूल जाए तो दूसरी उसे याद दिला दे। और गवाहों को जब बुलाया जाए तो आने से इनकार न करें। मामला चाहे छोटा हो या बड़ा एक निर्धारित अवधि तक के लिए है, तो उसे लिखने में सुस्ती से काम न लो। यह अल्लाह की स्पष्ट से अधिक न्यायसंगत बात है और इससे गवाही भी अधिक ठीक रहती है। और इससे अधि क संभावना है कि तुम किसी संदेह में नहीं पड़ोगे। हाँ, यदि कोई सौदा नक़द हो, जिसका लेन-देन तुम आपस में कर रहे हो, तो तुम्हारे उसके न लिखने में तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। और जब आपम में क्रय-विक्रय का मामला करो तो उस समय भी गवाह कर लिया करो, और न किसी लिखनेवाले को हानि पहुँचाए जाए और न किसी गवाह को। और यदि ऐसा करोगे तो यह तुम्हारे लिए अवज्ञा की बात होगी। और अल्लाह का डर रखो। अल्लाह तुम्हें शिक्षा दे रहा है। और अल्लाह हर चीज़ को जानता है ٢٨٢ और यदि तुम किसी सफ़र में हो और किसी लिखनेवाले को न पा सको, तो गिरवी रखकर मामला करो। फिर यदि तुममें से एक-दूसरे पर भरोसा के, तो जिस पर भरोसा किया है उसे चाहिए कि वह यह सच कर दिखाए कि वह विश्वासपात्र है और अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखे। और गवाही को न छिपाओ। जो उसे छिपाता है तो निश्चय ही उसका दिल गुनाहगार है, और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है ٢٨٣ अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और जो कुछ तुम्हारे मन है, यदि तुम उसे व्यक्त करो या छिपाओं, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा। फिर वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है ٢٨٤ रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) "हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।" और उनका कहना है, "हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।" ٢٨٥ अल्लाह किसी जीव पर बस उसकी सामर्थ्य और समाई के अनुसार ही दायित्व का भार डालता है। उसका है जो उसने कमाया और उसी पर उसका वबाल (आपदा) भी है जो उसने किया। "हमारे रब! यदि हम भूलें या चूक जाएँ तो हमें न पकड़ना। हमारे रब! और हम पर ऐसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था। हमारे रब! और हमसे वह बोझ न उठवा, जिसकी हमें शक्ति नहीं। और हमें क्षमा कर और हमें ढाँक ले, और हमपर दया कर। तू ही हमारा संरक्षक है, अतएव इनकार करनेवालों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।" ٢٨٦